ओडिशा दार्जिलिंग कपिलाश। यहाँ एक प्राचीन शिव मंदिर है यहां हर हर महादेव को श्री चंद्रशेखरश्री चंद्रशेखर (कपिलाश) के रूप में जाना जाता है। शिव मंदिर का निर्माण सात सौ साल पहले पुरी के तत्कालीन गजपति महाराज श्री श्री प्रताप नरसिम्हा देव * (१३३५-- १३३६)ने किया था।
स्थान और वास्तुकला
कपिलास पर्वत ढेंकानाल शहर से 25 किमी दूर स्थित हैं ।मंदिर समुद्र तल से लगभग 2239 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।मंदिर जाने के लिए दो रास्ते हैं।
एक 1352 सीढ़ियां चढ़कर और दूसरा सड़क मार्ग (बाराबंकी)से होते हुए यात्रा करते हुए है।
सत्ययुग की कथा
सौदास एक धार्मिक राजा थे। वह काशी मैं वसिष्ठ ऋषि के द्वारा दिए गए शिव जी के मंत्र को उच्चारण करके ध्यानमग्गन हो गए ।भगबान काशी विस्वनाथ राजा के घोर तपस्यासे प्रसन्न हुए और कहा ओड़ीशा नामक राज्य में कपिलास नामक एक पर्वत है और वहां गुप्तकाशी विद्यमान है(दूसरा काशी) । मैं सर्वदा वही रहता हु तुम वही जाओ और मेरी आराधना करो और तुम्हारी हर तकलीफ दूर हो जाएगा।राजा अपना ध्यान त्याग कर कपिलास पर्वत जाने के लिए रवाना होगा.बहुत दूर चलने के बाद राजा आखिर मैं कपिलास पर्वत के पास पहुँचगए। वह पे उन्होंने शिव जी के दर्शन लाभ किए। राजा वही अपना महल बनाके के रहने लगे ऐसे कुछ साल बीत गए फिर राजा अपने राज्य में चले गए।फिर उनका महल सब नस्ट होके जंगल में परिणत हो गया।
त्रेताययुग की कथा
रावण शिव का बहुत बड़ा भक्त था। रावण हमेशा शिव जी के दर्शन के लिए लंका से हिमालय आते थे। शिव, पार्वती, गणेश और कार्तिक कैलाश गिरि, हिमालय के एक ही भवन में रहते थे। और सफेद बैल(नंदी)हमेशा इमारत के सामने बैठता है ।रावण उस भवन के सामने पूजा करता था । रावण ने एक बार सोचा यहाँ भगवन शिव के दर्शन के लिए आने जाने में बहित समय चला जाता है क्यों न मैं कैलाश पर्वत को ही मैं लंका लेके चला जाऊ। तो रावण ने भगवान शिव माता पार्वती,भगवन गणेश और भगवान कार्तिकेय को पर्वत के समेत अपने हथेली में उठके द्रुत गति से लंका की और भागने लगा।
तो भगबान शिव ने अपने पैर के बड़े अंगूठे से रावण के हात को दबा दिए जिसके कारण रावण के हाता से पर्वत वही पर गिर गया और कैलाश पर्वत कपिला नाम के पर्वत पे आ गिरा था और कैलाश पर्वत वह जगह पे गिरने की वजर से आज वह जगह को कपिलेश नाम से प्रसिद्धि है।कपिला नाम से एक ऋषि वह पे रहते थे। इसीलिए वह जगह का नाम कपिला था और उन्होंने कपिला संहिता नामक ग्रन्थ का रचना किआ था।
कलियुग की कथा
तत्कालीन पुरी गजपति राजा श्री श्री प्रताप नरसिम्हा देव प्रथम * ने कपिलाश में * श्री श्री चंद्रशेखर * मंदिर बनवाया। इस मंदिर के निर्माण के पीछे एक पौराणिक कथा है।एक बार राजा शाम को समंदर के किनारे घूम रहे थे ।तो उन्होंने एक बैल (bull)को बाघ समझ के मार दिया। फिर उन्हें पता चला की वह बाघ नहीं बल्कि एक बैल (bull)था और राजा को इस बात पे बहुत अनुताप हुआ आवर राजा जगन्नाथ के पास गए इस पाप से मुक्ति पाने के लिए और उस रात मैं जगन्नाथ जी राजा के सपने में आए और कहा की राजा तुम कपिलेश पर्वत पे वह भगवन श्री श्री चन्द्रकालपेस्वर के शरण में जाओ तुम्हारा पाप क्षमा हो जाएगा कपिलेश पर्वत पे जाके राजा ने भगवान महादेव के दर्शन किए और गलती से किए पाप के ली क्षमा अर्चना करने लगे। राजा श्री श्री नरसिंह देव प्रथम को शिव के दर्शन से पाप मुक्ति मिली। उन्होंने फिर शिव लिंग पर 60 फुट का शिव मंदिर बनाया।शिव के मंदिर के ऊपर एक और मंदिर भी बनवाया।जोकि बौधविस्वनाथ के नामसे विश्वविख्यात है फिर कुछ समय बाद वह और कुछ मंदिर निर्माण हुए जिस में से पयामृता कुंड,मणिकर्णिका कुंड तुलसी सेनापती नमक एक ढेंकानाल का राजमिस्त्री , जिन्होंने इन सभी मंदिरों का निर्माण किया था तो गजपती राजने रम्फा नमक गाओं को उस राजमिस्त्री को पुरस्कार रूप में दे दिए थे गजपति राजा पुरुषोतम ने कांची राज कुमारी के साथ पारवती मूर्ति को जो उन्होंने कांची से पूरी लाए थे उसे भी राजा श्री श्री प्रताप नरसिम्हा देव ने लक्ष्मी नरसिम्हा के चरणों मैं अधिस्ठित कर दिए(भेट दे दिए). उन्होंने कपिलस मंदिर परिचालन करने के लिए पुरी गोवर्धन मठ से श्री श्रीधर स्वामी को कपिलस में लाए थे। श्रीधर स्वामी द्वारा सेवकों,पांडा, पुजारियों का परिचालित कराया गया।ये सभी कथाएं और भगबान कपिलेश्वर के पूजा के लिए अनेक छोटे बड़े मंदिर निर्माण किए गए।ये सभी कथाएं आज से सात सौ साल पहले की है।
श्री चंद्रशेखर मंदिर की ऊंचाई 60 फीट है।मंदिर के पश्चिम में सिंह द्वारा।मंदिर के चारों ओर गणेश, कार्तिक और पार्वती की पूजा की जाती है।भक्त पार्वती देवी को गंगा देवी कहते हैं। मंदिर का दरवाजा पूर्व दिशा में है।मंदिर के मुख पर एक मोहन और भोग मंडप है। भोग मंडप के पश्चिम में वृषभ है।मंदिर के अंदर जो शिव लिंग है वह (स्वयं-भू-लिंग) के रूप में परिचित है।
चंद्रशेखर के मंदिर की पूर्व दिशा में श्री नारायण और श्री बिश्वनाथ के मंदिर मध्य से से होते हुए मणिकर्णिका कुंड की ओर एक धारा बहती है।किंवदंती है कि गंगादेवी श्रीनारायण के दाहिने पैर छोटी उंगली के नाखून के कोने में आश्रय लिए थी।इसलिए नारायण के पैरों से झरना बहती हुई प्रतीत होती है।
इतिहासकारों के अनुसार, कपिलस के चंद्रशेखर का मंदिर 1335 ... 1336 में पुरी राजा नरसिंह देव (तृतीय) के द्वार से बनाया गया था।
कपिलस पहाड़ियों के शीर्ष देश में एक विशाल मंडप है जिसे * देवसभा * कहा जाता है। यह मंदिर से तीन किलोमीटर दूर घने जंगल में स्थित है।इस तरह के कई मठ हैं जिनमें पद्म गुफा, केंदुपनिया गुफा, ब्रह्मा चारी मठ, बलराम दास मठ शामिल हैं। ब्रह्माचारी मठ सबसे पुराना है और पुरी गोवर्धन मठ के एक जैन शिष्य श्रीधर गोस्वामी के द्वारा प्रतिष्ठित है।श्रीधर गोस्वामी यहां थे और उन्होंने कपिलस मंदिर का प्रबंधन किया। क्यूंकि वह एक आजीवन ब्रह्मचारी है, इस मठ का नाम * ब्रह्मा चारी मठ * है।
भुवनेश्वर में लिंगराज मंदिर की तरह, यहाँ दैनिक सेवा पूजा की जाती है।हर साल शिवरात्रि पर हजारों भक्त यहां एकत्र होते हैं।
इसके अलावा .. दोल। चंदन और देवविभ यह जैसे त्योहारों के दिन, श्री चंद्रशेखर की प्रति मूर्ति पूजा के लिए देवगांव स्थित बलदेव मंदिर में आती है। चावल के साठ मान दैनिक भोजन हैं। यह मिठाई, पूड़ी, सब्जियों और अरुआ अन्ना ठाकुर(श्री चंद्रशेखरजी)के दैनिक प्रसाद के लिए तैयार किया जाता है।
2 comments
Click here for commentsvery nice information
ReplyNice information keep it up.
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