ओडिशा:-श्री श्री कपिलेश्वर महादेव शिव मंदिर।
ऐसा भगवान शिव का मंदिर दुनिआ मैं बहुत ही कम है जो कि नदी के बीचों बीच स्तित है।ये मन्दिर ओडिशा के ढेंकानाल जिला के कामाक्षा ब्लॉक के जगन्नाथपुर गाँव में श्री श्री कपिलेश्वर महादेव नाम से स्तापित है।कपिलेश्वर महादेव के मंदिर से थोड़ी दूर पर(25फुट)माता पार्वती जी का मंदिर है ।ये मन्दिर 16 वीं शताब्दी का मंदिर है।
श्री कपिलेश्वर नाम से यह शिव मंदिर अब रामीआल नदी के बीचों बीच स्थित है। इतिहासकारों और शोधकर्ताओं का मानना है कि मंदिर गंग राजवंश में वापस आता है क्योंकि उनके पास भगवान शिव के लिए उनकी आत्मीयता और झुकाव था। ढेंकानाल जिले में लोग मानते हैं कि जो लोग यह शिव मंदिर में जाते हैं और भगवान के सामने व्रत करते हैं, उनकी सारी परेशानियां दूर हो जाती हैं और जीवन में खुशियां लौट आती हैं।
लोककथा :-यह एक लोककथा है,उस समय मैं जगन्नाथपुर मैं एक राजा रहते थे । जिसमें जगन्नाथपुर के राजा के गायों को चराने के लिए चरवाहे(cowboy) सभी गायों को चराने के लिए नदी किनारे ले जाते थे, लेकिन शाम को वापस लौटने पर एक गाय कभी दूध नहीं देती थी। जब राजा को सूचना मिली कि उसे संदेह है कि चरवाहे(cowboy) दूध चोरी कर रहा है। गरीब चरवाहे को हिरासत में रखा गया और अगले दिन एक दूसरे चरवाहे को उस विशेष गाय को चराने के लिए उसके साथ मैं एक सैनिक को भेजा गया । सैनिक को गाय और चरवाहे(cowboy)पर सतर्क रहने का निर्देश दिया गया,ताकि वह गाय का दूध चोरी न कर पाए ।
शाम होने से पहले वह विशेष गाय एक झाड़ी में घुस गई और झाड़ी के बीच में खड़ी हो गई। वहाँ एक पत्थर की बनी हुई शिवलिंग थी। जब गाय उस शिवलिंग के ऊपर आ खड़ी हुई। स्वचालित रूप से अपने दूध को शिव लिंग के ऊपर गिराने लगी। जब राजा को इसके बारे में पता चला, तो उन्होंने उस पवित्र स्थान पर भगवान शिव की उपस्थिति पर विश्वास किया और इस तरह उसी स्थान पर इस मंदिर का निर्माण किया गया। इस मंदिर के सात सौ साल के इतिहास को देखते हुए फिर भी हम इसे एक पर्यटन स्थल बनाने में असमर्थ हैं।
लोककथा :-,
16 वीं शताब्दी के अंत में एक और लोककथा का दावा है, रामीआल नदी के तट पर एक छोटा सा गाँव हटुआरी हुआ करता था। एक चरवाहे(cowboy) अपनी गायों को हर दिन नदी के किनारे चराने के लिए ले जाता था। लेकिन एक दिन उन्होंने एक काली गाय को खड़ा देखा और स्वचालित रूप से एक पत्थर के ऊपर दूध गिरा रही थी।चरवाहे ने यह बात आके गाँव वालो को बताया। गाँववासी उस पत्थर को शिव लिंग समझ के उसे पूजने लगे दूध और बेल के पत्ते से लिंग को पूजने लगे । प्रार्थना करने लगे कि यह स्थान पवित्र है। बाद में अनंग उदय नाथ ( तत्कालीन राजा )ने खुद उस स्थान का दौरा किया और बाद में भक्तों की भलाई के लिए एक मंदिर बनाने का आदेश दिया और उसके बाद दीनबंधु महेंद्र बहादुर उसी जगह पे श्री श्री कपिलेश्वर महादेव मंदिर स्तापना किए ।
जब से मंदिर ने लोकप्रियता हासिल की और महत्वपूर्ण और शुभ दिनों को मनाने के लिए किए गए सभी अनुष्ठानों के साथ देवता की पूजा की गई। हिंदू कैलेंडर कार्तिक पूर्णिमा और विशेष रूप से शिवरात्रि के दौरान, राज्य भर से बहुत सारे भक्त आते है और भगवान शिव यहाँ कपिलेश्वर नाम से पूजे जाने लगे ।सोमवार को इस स्थान पर बहोत भक्त आते है।श्रावण के महीने में बहोत कावड़िया (शिव भक्त) यहाँ कपिलेश्वर महादेव जी को जलाभिसेख करने के लिए दूसरे राज्य से भी यहाँ आते है।
ये सब लोककथा गाओं के बुजुर्ग लोगों से इस मंदिर के बारे में बड़े पैमाने पर आंकड़े एकत्र किए और उन्हें संगठित किया गया है ।
येहा श्री कपिलेश्वर मंदिर अपने मैं बहोत रहस्य समेटे हुए है । लोगों का कहना है कि जभी भी गाओं पर कुछ विपदा आती है तो श्री कपिलेश्वर महादेव उनकी गाँव की रक्षा करते है।
1985 में, पूर्व ढेंकानाल के जिला मजिस्ट्रेट (प्रियब्रत पटनायक )और धेनकनाल के राजा कामक्ष प्रसाद सिंहदेव(सांसद)मंदिर देखने गए, क्युकी 1985 तक आते आते मंदिर की बाहरी इमारत बुरी तरह ढह गया था।तो उन्होंने निर्णय लिआ की,नदी के तट पर एक नया मंदिर निर्माण करने का फैसला किया, लेकिन उस रात महाप्रभु ने कपिलेश्वर मंदिर के मुख्य पुजारी वृंदावन पांडा को सपने में आके कहा कि "मैं जहाँ हु वही सही हु मेरा जगा परिवर्तन मत करो,नहीं तो लोगो का विश्वास मेरे ऊपर से टूट जाएगा ,लोग मुझे याहा विश्वास करते है और मैं यही विराजमान रहूँगा"। इसलिए मंदिर अभी भी उसी जगह पे है और प्रियब्रत पटनायक ने निर्णय लिए कि मंदिर का वही जगे पर रहना सही है। तो उन्होंने निर्णय लिए कि मंदिर के उन्नति के लिए सरकार की तरफ से 107000 रुपये अनुदान किए।
लोग महादेव के दर्शन के लिए पानी के अंदर उतरे के जाते है मंदिर में ।
यह मंदिर भी हमारे प्राचीन संकृति और कला को दर्शाते है जो फिलहाल अभी समाप्त होने के कगार पर है ।लेकिन अभी भी देश मैं कुछ लोग ऐसे है जो इन अमूल्य प्राचीन धरोहर को सरंक्षित रखना चाहते है ।यह मंदिर अभी इसके पहले स्तिति में नहीं है क्यूंकि सर्कार के अनदेखी के कारण यह प्राचीन धरोहर भी अभी लीन होने जा रही ।अगर हम हमारी इस प्राचीन धरोहर की सुरक्षा कर पाए तो हम इसे आने वाले कल में हम इसे ऐसा बना पाएंगे ।इसे धरोहर की सुरक्षा करना हमारा और सर्कार की जि
15 comments
Click here for commentsSrikant. Really you are great. Such nice way you explain about our Kapileswar temple. I have no wards for you. Great well done.
ReplyNice information about our Kapileswar Temple. Aise hi nai nai Jankari Sanatan Dharm ke bare mein batate Jana. keep it up..
ReplyNice information about our Kapileswar Temple. Aise hi nai nai Jankari Sanatan Dharm ke bare mein batate Jana. keep it up..
ReplyThank you, it is not my hard work, it is not complete without your support.
ReplyPlease follow, like and comment on my blog.
Replythank u bhai
ReplyThis is one of the most beautiful temples I have ever seen.This is an architectural marvel in design and crafting.Once you come inside the temple you feel religious because of the holy surrounding.Though there is a big rush for the darsan of the Lord, it is worth and you feel satisfied.The evening ritual of replacing the flag atop the temple is great to watch.I feel some sort of sitting arrangement may be provided to the pilgrims to see the proceedings comfortably.Anyway it is a lifetime experience to be inside the temple for few hours.
ReplyGreat srikant. Its possible only the blessing of kapileswar. First time we meet within few hours you start complet it. Really its possible only by blessing of kapliswar. Because when i was write the history it takes me saventh months but you write and present in such way i cant belive your skill great. I hope in future you will be one great blog writre
ReplyNice unbelivable place .beautiful temple .feeling blessed
ReplySpiritual place
ReplyThank u bhai.
ReplyThank u bhai.
Replyyes
Replyyes friend.Everyone please try to support this temple.
ReplyRatan Behera, thank you for this information. I never knew there is such a wonderful temple exist in this part of Odisha. Good work... I really appreciate your efforts.
ReplyKeep it up.